बैड्स ऑफ बॉलीवुड:

द बैड्स ऑफ बॉलीवुड एक वेब सीरीज है, जो बॉलीवुड की ऊँचाइयों और गहराइयां दोनों को दिखाती है।इसकी कहानी ग्लैमरस है, और सबसे बढ़कर,यह दिल को छूने वाली है। आर्यन खान का यह डेब्यू न सिर्फ़ शानदार है, बल्कि यह साबित करता है कि कहानियाँ तब सबसे असरदार होती हैं, जब वे सच को बिना डरे सामने लाती है |
आर्यन खान का नाम सब ने सुना होगा ? जैसा बाप, वैसा बेटा – यह कहावत यहाँ पर बिल्कुल फिट बैठती है। कल (18 सितम्बर 2025) नेटफ्लिक्स आर्यन खान की डेब्यू वेबसीरीज़ रिलीज़ हुई – द बै**ड्स ऑफ बॉलीवुड। रिलीज होते ही इस सीरीज ने तहलका मचा दिया है। आर्यन ने इसे लिखा और , निर्देशित और निर्मित भी किया है, जबकि प्रोडक्शन का काम रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट के द्वारा किया गया है।
यह वेबसीरीज़ सैटायर, एक्शन, कॉमेडी और ड्रामा का अनोखा संगम है। इसमें सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, दिखाया गया बल्कि इसमें बॉलीवुड की चमचमाती दुनिया के पीछे छुपी महत्वाकांक्षाएँ, साज़िशें और कड़वी सच्चाइयां भी उजागर होती है।इसके एक सीज़न में कुल सात एपिसोड हैं, जिनकी अवधि 39 से 56 मिनट के बीच है। हिंदी भाषा में बनी यह सीरीज़ फिल्म इंडस्ट्री की अंदरूनी दुनिया को बारीकी से दिखाती है । आज हम इस आर्टिकल में इसके बारे में बात करते हैं।
बैड्स ऑफ बॉलीवुड में सितारों का मेला :
इस बेवसीरीज़ की सबसे बड़ी खासियत है की इसमें स्टारकास्ट का मेला है ।ऐसा लगया है मानो पूरा बॉलीवुड एक ही जगह इकठ्ठा हो गया हो। लक्ष्य ने आसमान सिंह का बखूबी किरदार निभाया है। उनके चेहरे पर मासूमियत और महत्वाकांक्षा दोनों दिखाई दे रही है। कुछ सीन में उनकी अदाकारी इतनी गहरी है कि लगता है वे अपनी असलियत का जीवन जी रहे हैं।
राघव जुयाल ने इस सीरिज में परवेज़ के रूप में शानदार काम किया है। उनका अंदाज़ इंटेंस है,उनके आंखों की भाषा अलग है और हर पल में वे किरदार की परतें खोलते चलते हैं। उनकी और लक्ष्य की टकराहट इस सीरीज़ की रीढ़ की हड्डी है । दोनों की केमिस्ट्री बहुत सच्लची लगती है जिसके कारण दर्शक उनसे ऐसे ही जुड़ जाते हैं।
अन्या सिंह बतौर सन्या अहमद कहानी में ताजगी लाती हैं। उनका स्क्रीन प्रेज़ेन्स खुशनुमा है और अपनी भावनाओं को उन्होंने बखूबी संभाला है। सहर बंबा (करिश्मा तलवार) अपनी छवि से कहानी में ग्लैमर और गहराई दोनों जोड़ती हैं। मोना सिंह और गौतमी कपूर अपने मजबूत अंदाज़ से परिवार और रिश्तों के भावनात्मक पक्ष को निखारती हुई नजर आती है
मनोज पाहवा (अवतार), मनीष चौधरी (फ्रेडी सोडावाला), राजत बेदी (जराज सक्सेना), विजयंत कोहली (रजत सिंह) – सबने अपने कैरेक्टर को संजीदगी से निभाया है। यह कोई एक कलाकार की सीरीज़ नहीं है, बल्कि पूरे एन्सेंबल का खेल है।
इस सीरीज में सबसे ज्यादा चर्चा में बॉबी देओल का किरदार अजय तलवार है ।इसमें उनकी एंट्री ही धमाकेदार है और वे इस कहानी में एक अलग वजन डालते हैं। इसमें उनके संवाद और बॉडी लैंग्वेज देखने लायक है।
बैड्स ऑफ बॉलीवुड हंसी, तंज और सच्चाई :

इस सीरीज़ की खासियत है इसका अलग अंदाज़। इसमें न तो पूरी तरह से गंभीर है और न ही सिर्फ हंसी मज़ाक है । यह सीरीज दोनों का मिश्रण है।इसमें इंडस्ट्री के भीतर के गहरे राज़, नेपोटिज़्म के ऊपर तंज, बड़े प्रोड्यूसर्स पर कटाक्ष – सब कुछ खुलेआम दिखाया गया है। कुछ मज़ाक चुटीले और ताज़गी से भरपूर हैं। कई बार तो हंसी को रोकना बहुत मुश्किल हो जाता है।
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कुछ जगह पर मज़ाक हद से ज्यादा भी हो जाते है । जैसे “मी टू” वाला मजाक अनावश्यक लगा है । लेकिन इसके बावजूद यह सीरीज़ स्वंजागरूकता (self aware) और ईमानदार लगती है।
इसकी कहानी तेज़ है, लेकिन बीच-बीच में कहानी थोड़ा धीमा हो जाती है। दर्शक को लगता है कि अब रफ्तार थम गई, पर तभी कोई नया मोड़, नया सीन या नया खुलासा सामने आकर फिर से पकड़ मज़बूत कर देता है। यही कारण है कि यह बिंज-वॉच करने लायक है।
चार-पांच एपिसोड देखने के बाद आपको एहसास होता है कि यह सिर्फ एक ड्रामा नहीं, बल्कि पूरी इंडस्ट्री का काला सच है| इस कहानी में दोस्ती कब दुश्मनी में बदल जाए, हंसी चेहरे के पीछे कितने ज़ख्म छुपे हों, और इस खेल में कौन किसे पीछे छोड़ देता है – सब कुछ साफ दिखाई देता है।
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स्क्रीनप्ले लोगो को बांधे रखता है। न कहानी को ढीली पड़ने देता है, न दर्शक का ध्यान भटकता है। जैसे-जैसे यह कहानी खुलती जाती है , आप खुद को उसी दुनिया में महसूस करने लगते है ! डायरेक्टर ने इसमें ड्रामा और हकीकत का संतुलन बखूबी बनाए रखा है !
बैड्स ऑफ बॉलीवुड में आर्यन खान का निर्देशकीय कमाल:

आर्यन खान का यह पहला बड़ा प्रोजेक्ट है, और उन्होंने इस प्रोजेक्ट को पूरे आत्मविश्वास से संभाला है। बतौर निर्देशक और शो रनर, उनकी दृष्टि साफ़ झलकती है। सीरीज़ का टोन एकसमान और प्रभावशाली है। वे सैटायर और संवेदनशीलता के बीच संतुलन बनाए रखते हैं, जिससे कहानी न तो ज़्यादा कटु लगती है और न ही ज़रूरत से ज़्यादा भावुक। उनकी नज़र किरदारों की भावनाओं और दृश्यों की बारीकियों पर रहती है।
एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो बॉलीवुड के करीब रहा है, आर्यन इस इंडस्ट्री का चहरा बडी सहजता से पेश किया हैं। न उसको बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया हैं। उनके साथ हुए एक हादसें को भी उन्होंने बडी साहजिकता से पेश किया है। ओवरओल सिरीज देखते वक्त मूंह से एक ही लब्ज बाहर आता है वाह!
बैड्स ऑफ बॉलीवुड की कमियाँ :
कोई भी प्रोजेक्ट परफेक्ट नहीं होता, और इस सीरीज़ में भी कुछ कमियाँ हैं। कुछ एपिसोड्स में रफ्तार थोड़ी धीमी हो जाती है, कुछ हास्य के पल ज़रूरत से ज़्यादा ओवर-द-टॉप लगते हैं, जो कहानी के मूड से थोड़ा हटकर महसूस होते हैं। इसके अलावा, कुछ सपोर्टिंग किरदारों को और स्क्रीन टाइम मिलता, तो उनकी गहराई और बढ़ सकती थी। ये छोटी-मोटी कमियाँ हैं, जो सीरीज़ के कुल प्रभाव को कम नहीं करतीं।
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बैड्स ऑफ बॉलीवुड में बॉलीवुड का आईना :
द बैड्स ऑफ बॉलीवुड की खासियत यह है कि यह सुरक्षित रास्ता नहीं चुनती। यह न तो बॉलीवुड का सिर्फ़ गुणगान करती है और न ही उसे पूरी तरह नकारती है। यह एक ऐसा आईना है, जो इंडस्ट्री की चमक और खामियों, दोनों को दिखाता है। यह सपनों की नगरी के साथ-साथ उस जंग को भी उजागर करता है, जो इस चमक के पीछे लड़ी जाती है। कहानी यूनिवर्सल है—महत्वाकांक्षा, वफादारी और विश्वासघात—लेकिन इसका देसी स्वाद इसे और खास बनाता है।
और हां, फिल्म का अंत। बिना स्पॉयलर दिए कहूँ तो यह वैसा ट्विस्ट है जो सीट से उठने नहीं देता। आखिरी सीन में एक पल के लिए आप ठहर जाते हैं।
इन शोर्ट द बै**ड्स ऑफ बॉलीवुड में मज़बूत किरदार, चुटीला लेखन और आर्यन खान का दमदार निर्देशन है। लक्ष्य, राघव जुयाल और बॉबी देओल की परफॉर्मेंस लाजवाब हैं, और अंत का ट्विस्ट कहानी को नया आयाम देता है।