लड्डू गोपाल की आरती pdf
कृष्ण जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्म का एक आनंदमयी त्योहार है, जिन्हें भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में माना जाता है। यह त्योहार हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है,
जन्माष्टमी का पर्व हर साल बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है , इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और बड़े ही विधि विधान के साथ भगवान की पूजा अर्चना करते हैं |
भक्तों की ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के रोहिणी नक्षत्र में रात को 12 बजे भगवान लड्डू गोपाल का जन्म हुआ था , इसीलिए ज्यादातर भक्त रात12 पूजा करते हैं और अपना व्रत खोलते हैं !

पूजा का मुहूर्त
2025 में 16 अगस्त की रात को लड्डू गोपाल के जन्म का उत्सव मनाते हुए 17 अगस्त 2025 को रात 00:05 से रात 00:47 बजे के बीच पूजा करने का शुभ मुहूर्त रहने वाला है !
जन्माष्टमी पर कान्हा जी को ये भोग लगाएं
1. माखन और मिश्री
धार्मिक ग्रंथों के अनुशार श्रीकृष्ण को दूध और उससे बनी हुई चीजें बहुत पसंद हैं, खास तौर पर माखन, जिसे वे हमेशा अपने मित्रों के साथ चुराकर खाते थे. इसलिएउनका एक नाम माखन चोर भी है. ऐसे में आप जन्माष्टमी के दिन माखन में मिश्री मिलाकर भोग लगाएं.
2. श्रीखंड का भोग
जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान को श्रीखंड का भोग लगा सकते हैं. जो कि शुभ माना जाता है. चूंकि, श्रीखंड दही से बनता है ऐसे में लड्डू गोपाल को यह भी काफी पसंद माना जाता है.
3. मालपुआ
शास्त्रों में ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि श्रीकृष्ण भगवान को राधा रानी के हाथ के बनाए हुए मालपुए बहुत पसंद आते थे जिसे वे खूब चाव के साथ खाते थे. ऐसे में आप भी जन्माष्टमी के शुभ अवसर मालपुए का भोग लगा सकते हैं.
4. 56 भोग
जन्माष्टमी के दिन बहुत से भक्त भगवान को 56 प्रकार का भोग भी लगाते हैं जिसमे विभिन्न प्रकार के व्यंजन जिसमे खीर , सेवइयां , सब्जी , पूरी , विभिन्न प्रकार की मिठाइयाँ , और चॉकलेट शामिल होते हैं !
लड्डू गोपाल की आरती

श्री लड्डू गोपाल जी की आरती
आरती श्री बालकृष्ण की कीजे।
अपना जन्म सफल कर लीजे ॥
श्री यशोदा का परम दुलारा।
बाबा की अखियन का तारा ।।
गोपियन के प्राणों का प्यारा।
इन पर प्राण न्योछावर कीजे ।।
।। आरती ।।
बलदाऊ के छोटो भैय्या।
कान्हा कहि कहि बोलत मैय्या।।
परम मुदित मन लेत बलैय्या।
यह छबि नैनन में भरि लीजे ।।
।। आरती ।।
श्री राधावर सुघर कन्हैय्या।
ब्रज जन का नवनीत खवैय्या।।
देखत ही मन नयन चुरैय्या।
अपना सर्वश्व इनको दीजे ।।
।। आरती ।।
तोतर बोलनि मधुर सुहावे।
सखन मधुर खेलत सुख पावे ।।
सोई सुकृति जो इनको ध्याये।
अब इनको अपनो करि लीजे ॥
।। आरती ॥

भए प्रगट कृपाला परम दयाला
भए प्रगट कृपाला परम दयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मनहारी अदभुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता॥
करुना सुखसागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता॥
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै॥
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसु लीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते प परहिं भवकूपा॥