करवा चौथ व्रत कथा एवं आरती
करवा चौथ व्रत कथा :

पहली कथा :- एक साहूकार था जिसके सात बेटे और एक बेटी थी | सातों भाई व बहन एक साथ बैठकर भोजन करते थे | एक दिन कार्तिकपक्ष की चौथ का व्रत आया तो साहूकार की पत्नी ,उसकी बहुओं और बेटी ने व्रत रखा था | शाम को जब सभी भाई भोजन करने के लिए बैठे तो उन्होंने अपनी बहिन से कहा – ‘ आओ बहिन ! भोजन कर लें | ”
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बहिन बोली – आज मेरा करवा चौथ का व्रत है | इसलिए चाँद निकलने पर उसे अर्ध्य देकर ही भोजन करुँगी | तब भाइयों ने सोचा कि चाँद के निकलने तक बहिन भूखी रहेगी | अतः एक भाई पेंड पर चढ़ा और वह दिया जलाया और दुसरे हाथ से चलनी की ओट कर दी जिससे वह दूर से चाँद जैसा लगने लगे |
फिर शेष भाई अपनी बहिन को उस नकली चाँद को दिखाकर कहने लगे – ” बहिन ! चाँद नक़ल आया है , चलकर उसे अर्ध्य दे दो | ” बहिन अपनी भाभिओं से बोली – ” चाँद निकल आया है , चलो अर्ध्य दे दें |” भाभियां बोली -” तुम्हारा चाँद निकला होगा , हमारा चाँद तो रात में निकलेगा |” तब बहिन ने अकेले ही उस नकली चाँद को अर्ध्य दे दिया | उसके बाद जब वह खाना खाने लगी तो पहले ग्रास में बाल आ गया , दुसरे ग्रास में कंक्कड़ आया ,और तीसरा ग्रास मुहं की ओर करते ही उसकी ससुराल से सन्देश आया की उसका पति बहुत बीमार है , जल्दी भेजो |
अपनी लड़की को विदा करते समय माँ ने कहा –
रस्ते में तुम्हे जो भी मिले , उसके पाँव लग्न और जो कोई भी सुहागिन रहने का आशीर्वाद दे, उसके पल्ले में गांठ लगाकर उसे कुछ रूपए देना | ” बहिन जब भाइयों से विदा होकर ससुराल को चली तो रस्ते में जो भी मिला , वह सबके पाँव लगी | सबने उसे यही आशीर्वाद दिया – ” तुम सात भाइयो की बहन ” तुम्हारे भाई सुखी रहें और तुम उनका सुख देखो |” सुहाग का आशीर्वाद किसी ने नही दिया | जब वह ससुराल पहुंची तो दरवाजे पर उसकी छोटी ननद खड़ी थी | वह उसके भी पाँव लगी तो उसके कहा – ” सुहागिन रहो | दूधो नहाओ – पूतो फलो | ” उसने यह सुनकर उसके पल्ले में गांठ बाँधी और उसे सोने का सिक्का दिया |
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फिर भीतर गई तो सास ने कहा – ” तेरा पति धरती पर पड़ा है | ” तो वह अपने पति के पास जाकर उसकी सेवा करने के लिए बैठ गई | बाद में सास ने दासी के साथ बची – खुची रोटी भेज दी | इस प्रकार समय बीतते – बीतते अगहन ( मार्गशीर्ष ) की चौथ आई तो वह चौथ माता से बोली – हे माता ! आप ही मेरा उद्धार करोगी | आपको मेरा सुहाग देना पड़ेगा | ” तब चौथ माता ने ने बताया बी- ” पूस की चौथ आएगी , वह मेरे से बड़ी है , उससे से कहना | ” इतना कहकर चौथ माता चली गई – ” आगे आने वाली चौथ से कहना |
” इस प्रकार से माघ, फाल्गुन , चैत , वैसाख , ज्येष्ठ , आषाढ़ , श्रावण , भादों – की चौथ आयीं और चली गई | सर जब आश्विन की चौथ आई तो उसने बताया – ” कार्तिक की चौथ ही तुम्हारा सुहाग वापिस कर सकती है | वह आये तो उससे विनती करना | ” फिर वह भी चली गई |
जब कार्तिक की चौथ आई तो बोली – ” भाइयों की प्यारी करवा लें , दिन में चाँद उगानी करवा ले , व्रत खंडन करने वाली करवा ले |” यह सुनकर वह चौथ माता के पाँव पकड़कर गिडगिडाने लगी – हे चौथ माता ! मेरा सुहाग तुम्हारे हांथों में है , आप ही मुझे सुहागिन करें | ” तो बमाता बोले – ” तुम्हारे व्रत भंग कर दे४ने से भगवन श्री गणेश जी अप्रसन्न हो गए हैं और इसी कारण से तुम्हारे पति की यह गति हुई है |
अब यदि तुम पुन: पुरे विधि – विधान के साथ में व्रत करोगी तो तुम्हारा पति जीवित हो सकता है | ” यह सुनकर उसने विधि – विधान पूर्वक व्रत किया और चन्द्रमा निकलने पर उसे अर्ध्य दिया | उसके इस प्रकार से व्रत संपन्न करने से गणेश जी अत्यंत प्रसन्न हुए और उनकी आज्ञा पाकर करवा चौथ ने अपने टीके में से लेकर उसके आदमी पर चीनता दिया तो वह उठकर बैठ गया और बोला – ” आज मैं बहुत सोया | ” वह बोली – पुरे बारह महीने सोये हो | आज गणेश जी और्करवा चौथ माता की कृपा से उठे हो | “
हे करवा चौथ माता ! आपने जिस प्रकार जिस प्रकार से उसके पति को आयु प्रदान की , वैसे ही हमारे पति को दीर्घायु प्रदान करना | जो भी इस व्रत को करे और जो भी इस कथा को पढ़ें या सुने – उन सबके पतियों को दीर्घायु प्रदान करना | सबको उत्तम फल देना |
करवा माता की आरती :

ॐ जय करवा माता , मैया जय करवा माता |
जो कोई तुमको ध्यावत , पार उतर जाता ||
हम सबकी माता हो , तुम हो रुद्रानी |
तुम्हरे यश को गावैं , हम सरे प्राणी ||
कार्तिक बड़ी चतुर्थी को , जो नारी व्रत करे |
पति होवे दीर्घायु , दुःख जा दूर परे ||
रहे सुहागिन हमेशा , एसी हर नारी |
गणपति बनें कृपालु , विघ्न तारे भरी ||
करवा माता की आरती , जो नारी नित गावै |
कहत भक्त आशारानी , मनवांछित फल पवई ||
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गणेश जी की आरती :

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥ जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
भगवान गणेश की जय, पार्वती के लल्ला की जय