Fauja Singh diet:

उनका अहार हमेशा हल्का फुल्का, दाल, हरी सब्ज़ियाँ, दही और दूध है।वह कोई भी तला हुआ खाना नहीं खाते ।वे ढेर सारा पानी और अदरक वाली चाय पीते है । वह अपने रब्बा (भगवान) का नाम लेते हुए जल्दी सो जाते है !क्योंकि वे नही चाहते की उनके दिमाग में कोई नकारात्मत विचार आये .फौजा सिंह मीठे से परहेज करते थे और कभी भी पेट भरकर नहीं खाते थे, हमेशा थोड़ा भूखा रहना उनके नियमों में शामिल था.
खाने के बाद टहलना और दिन में हल्की कसरत या सैर उनकी दिनचर्या का हिस्सा था. वे कहते थे, जो कुछ भी खाओ, सादगी से खाओ और उसे पचाने का इंतजाम जरूर करो. उनके अनुसार, सादा खाना और आत्म-संयम ही लंबे और स्वस्थ जीवन की जरूरत है.
फौजा सिंह की लंबी उम्र और फिटनेस का सबसे बड़ा राज उनकी बेहद साधारण लेकिन बैलेंस्ड डाइट थी. वे पूरी तरह शाकाहारी थे और फास्ट फूड या अधिक मसालेदार चीजों से दूर रहते थे. उनका दिन नींबू पानी से शुरू होता था और नाश्ते में दलिया या गेहूं की रोटी के साथ हरी सब्जियां शामिल होती थी. दोपहर के खाने में सादा दाल, रोटी और मौसमी सब्जी होती थी. वे दिनभर खूब पानी पीते थे. वह वेज या कहें कि प्लांट बेस्ट डाइट लेते थे. रिसर्च में भी इस डाइट को लंबी उम्र वाला बताया गया है.
मानसिक स्वास्थ्य :
फौजा सिंह का मानना था कि शारीरिक स्वास्थ्य जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी मानसिक संतुलन भी है. उन्होंने कई बार कहा कि चिंता, गुस्सा और ईर्ष्या जैसे भाव शरीर को भीतर से कमजोर कर देते हैं. वे हमेशा मुस्कुराते रहते थे और सकारात्मक सोच रखते थे. अपने परिवार के साथ समय बिताना, रोज टहलना, बच्चों से बातचीत करना और खुद को व्यस्त रखना उनकी मानसिक मजबूती का राज था. उनका मानना था कि जिंदगी का हर दिन एक तोहफा है और उसे मुस्कान के साथ जीना चाहिए. फौजा सिंह की लाइफस्टाइल यह सिखाती है कि फिटनेस सिर्फ व्यायाम और डाइट तक सीमित नहीं है, दिल और दिमाग को भी स्वस्थ रखना उतना ही जरूरी है.
फौजा सिंह :
114 वर्ष के अनुभवी मैराथन धावक फौजा सिंह कौन थे जिनकी सड़क दुर्गाटना में मृत्यु होगयी है !मैराथन धावक फौजा सिंह का सोमवार को पंजाब के जालंधर जिले में उनके पैतृक गाव में टहलते वक्त अज्ञात वाहन की चपेट में आने से मृत्यु हो गयी ! वे 114 वर्ष के थे .उनके निधन की पुष्टि ,लेखक खुशवंत सिंह ने की है .उन्होंने फौजा सिंह के परिवार से बात की है ,चंडीगढ़ के प्रशासक और पंजाब के राज्यपाल ने उनके निधन पर गहरा दुःख जताया है !
उनका जन्म एक अप्रैल 1911 को पंजाब के जालंधर जिले के ब्यास पिंड में हुआ था. उन्होंने 89 साल की उम्र में इंटरनेशनल लेवल पर मैराथन दौड़ना शुरू किया .इस उम्र में मैराथन दौड़ाने के उनके फैसले ने सबको हैरान कर दिया .फौजा सिंह को उनके जूनून की वजह से ‘टर्बन्ड टॉरनेडो’ (पगड़ी वाला तूफान) के नाम से जाना जाता था !

साल 2004 में उन्होंने 93 साल की उम्र में लंदन मैराथन पूरी की. 2011 में 100 साल की उम्र में उन्होंने टोरंटो मैराथन पूरी की और 100 प्लस की कैटेगरी में अपना रिकार्ड बनाया . वे दुनिया में सबसे उम्र दराज मैराथन धावक थे .लेकिन उन्हें जिंदगी में एक बात का मलाल था कि वह अग्रेंजी बोल और पढ़ नहीं पाते थे. साल 2012 लंदन ओलंपिक की मशाल थाम चुके फौजा सिंह सिर्फ पंजाबी जानते थे और उन्हें अंग्रेजी समझने के लिए एक ट्रांसलेटर की जरुरत पड़ती थी .
बचपन से पैर में परेशानी :
उनका जन्म जालंधर में हुआ था उनका शुरूआती जीवन बहुत आसान नही था . बचपन में बहुत दुबले पतले दिखने वाले फौजा को उनके दोस्त उन्हें “डंडा”कहते चिढाते थे .शुरुआत में कमजोरी की वजह से पैरों में कुछ दिक्कत थी, इसलिए पांच साल की उम्र तक उनके लिए चल पाना तक मुश्किल था. बाद में बड़ी मुश्किल से चल पाए तो एक किलोमीटर से ज्यादा चलना उनके लिए मुमिकन नहीं था. लेकिन धीरे-धीरे पिता के साथ खेतों में काम करते हुए शरीर को मजबूत किया और तब जाकर पैरों में भी जान आ गयी .
वक्त बीता और देश आजाद हुआ. फौजा सिंह का जीवन भी आगे बढ़ा और ज्ञान कौर से उनकी शादी हुई. उनके घर में तीन बेटे और तीन बेटियों का जन्म हुआ. फौजा सिंह खेत में काम करते थे और उनकी पत्नी ज्ञान कौर घर संभालती थी . धीरे धीरे उनके बच्चे बड़े हुए और काम की तालाश में लन्दन और कनाडा चले गये .उनका छोटा बेटा कुलदीप जालन्धर में रह कर अपनी माँ और पिता की देखभाल करता था !
भारत क्यों छोड़ा :

फौजा सिंह के भारत छोड़ने का सबसे बड़ा कारण था उनके पत्नी और छोटे बेटे कुलदीप का निधन .सन 1992 में उनके पत्नी ज्ञान कौर का निधन हो गया 80 साल के हो चुके फौजा सिंह को लगा अब जिन्दी के कुछ साल बचे है वो छोटे बेटे कुलदीप के सहारे कट जायेंगे लेकिन . साल 1994 में उनके बेटे की भी मृत्यु हो गयी . भारत में फौजा सिंह का कोई सहारा नही बचा! 2 साल में उनका पूरा जीवन उलट -पुलट गया . पत्नी और बेटे की मृत्यु ने उनको तोड़कर रख दिया .
इसके बाद फौजा सिंह के बच्चे उन्हें अपने साथ लन्दन ले गये .फौजा लंदन जाकर बेटे सुखविंदर और उसके परिवार के साथ रहने लगे. पराए मुल्क में उन्हें न अंग्रेजी भाषा आती थी और न ही वहां का रहन-सहन उन्हें जंचता था. घर में सिर्फ टीवी के सहारे उनके दिन गुजर रहे थे. एक दिन टीवी पर उन्हें खबर दिखी कि लंदन में मैराथन होने वाली है और टीवी एंकर लोगों को इसमें हिस्सा लेने के लिए कह रहा है !
80 की उम्र में पहली मैराथन :

साल 2000 में फौजा सिंह ने पहली बार मैराथन में हिस्सा लिया और 6 घंटे और 54 मिनट का वक्त लिया. इस मैराथन को पूरा करने के बाद जब उनसे पूछा गया कि सरदार जी आप इतना लंबा कैसे दौड़ गये . फौजा सिंह ने जवाब दिया की पहले तो 20 मील मुझे आसान लगे फिर 6 मील मै अपने रब से बात करता रहा !
2006 में लन्दन में एक और मैराथन शुरू हुई फौजा सिंह अब 90 की उम्र पार कर चुके थे और इस बार एक रिकॉर्ड पर फौजा की नजर थी. तब 90 पार चुके मैराथन दौड़ने का रिकॉर्ड 7 घंटे 52 मिनट का था, जो कि 25 साल से टूटा नहीं था. फौजा सिंह ने 6 घंटे 55 मिनट में यह मैराथन पूरी की और 57 मिनट के अंतर से वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दिया. अगले एक साल के भीतर उन्होंने तीन और मैराथन में हिस्सा लेकर रिकॉर्ड बना दिया.